कुलपति के नाम एक हितैषी की आखिरी चिट्ठी
Click here to see print version of leaflet
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी
महामहिम कुलपति महोदय,
इसे चिट्ठी नहीं, हमारे आंसुओं का सैलाब समझिए. वजह ये कि लोगों ने चिट्ठी लिखने का मशवरा देते हुए कहा, ‘आखिरी ही समझो. फिर महामहिम को कहाँ लिख पाओगे!’ सुनकर हमें लगा जैसे हम सिनेमा के परदे पर अस्पताल के गलियारे में खड़े उस कैरेक्टर के किरदार में हैं जिसे कोई दूसरा रुआंसा होकर कह रहा है, ‘जाओ, जल्दी मिल लो. फिर कहाँ मिलना हो पायेगा!’
यक़ीन मानिएए हमने नहीं सोचा था कि ऐसी नौबत आ जायेगीण् जिस दिन आपने विश्वविद्यालय के कानून में हेरा.फेरी करके कुलपति को दूसरा टर्म दिए जाने के रास्ते की अड़चनें दूर कर ली थींए उस दिन हम आनेवाले कई सालों के लिए निश्चिन्त हो गए थेण् इस निश्चिंतता को पहला झटका तब लगा जब चासास्का ;थ्ल्न्च्द्ध रोल.बैक किये जाने के समय आपने अपने इस्तीफ़े की घोषणा कर दीण् अलबत्ता चंद घंटों बाद ही आपने उगले को निगल लिया तो हमारा झटका भी लगे.हाथ रोल.बैक हो गया.
दूसरा झटका तब लगा जब हमने सुना कि आपको बेआबरू करके कूचे से निकालने की तैयारी हैण् इसके लिए अव्वल तो चासास्का लागू करने के तरीक़े को अवैध ठहराया गया और दूसरेए आपके कंप्यूटर.प्रेम की व्याख्या ओबीसी.विद्वेष के रूप में की गयीण् ग़रज़ कि सरकार ने इस मुई डूटा के श्वेत पत्र पर भरोसा कर लियाण् पर हमें उम्मीद थी कि जो सरकार खुद वैध.अवैध के दकियानूसी खयालात से ऊपर है और जाति.व्यवस्था की ऊंच.नीच को भी दिल से स्वीकार करती हैए वह इन चीज़ों के लिए आपको सज़ा भला क्यों देगीघ् सज़ा का भय तो बस सेवा.भाव पैदा करने के लिए है! वह आपने मनों नहींए टनों के भाव से पैदा किया और आबरू बचाने में कामयाब रहेण् इस प्रकार हमारा दूसरा झटका भी रोल.बैक हुआ.
लेकिन अब जब पता चला कि इतनी सेवकाई करके भी आपको दूसरा टर्म नहीं मिलना है और अगले दो महीने में गद्दी खाली करनी हैए तो हम अपने को संभाल न पाएण् एक मिलीभगत और हेरा.फेरी का काम ही तो था जिसमें कुछ ईमानदारी बची हुई थीण् वह भी अब जाती रहीघ् आकाओं का भरोसा जीतने के लिए आपने क्या.क्या नहीं किया! कृष्ण;गोपालद्धभक्ति में अपना सर्वस्व अर्पण कर दियाए फीते कटवाने और भाषण दिलवाने का रिकॉर्ड कायम कियाए दिल्ली विश्वविद्यालय को व्यापमं.2 की प्रयोग.भूमि बना डालाए जिस भी पत्थर ;पढ़िएरू लिख लोढ़ा पढ़ पत्थरद्ध को इन्होंने ईश्वर ;पढ़िएरू प्रोफेश्वरद्ध की जगह बिठालने को कहाए अविलम्ब बिठालाण् इतना कुछ करके भी भरोसा जीत न पाए! अरेए सुदर्शन रावए गजेन्द्र चौहानए भाई बलदेव शर्मा जैसों की टक्कर में डीयू के लिए आपसे बेहतर इन्हें कौन मिल सकता थाघ् पर नहीं! इन्हें तो जाने कैसी रिकॉर्डतोड़ निकृष्टता चाहिए कि इनकी कसौटी पर आप भी खरे नहीं उतरते!
एक बात तो निश्चित है, महामहिम. रिकॉर्ड जो आपने बनाए हैं, उन्हें कोई तोड़ नहीं सकता. माना कि शिक्षकों को रेंगते कीड़ों में तब्दील कर देने की आपकी योजनायें धरी-की-धरी रह गयीं; माना कि डूटा को ध्वस्त करने की आपकी तमाम कोशिशों के बावजूद नंदिता जैसों के नेतृत्व ने इस देशद्रोही संगठन को न सिर्फ बचा लिया, बल्कि उसकी आवाज़ को इतनी बुलंदी दे दी कि दुनिया के सामने आपके सारे देशभक्त कारनामों पर पड़ी नक़ाब उलट गयी; पर कारनामे तो कारनामे ही हैं! उनका क्या मुकाबला! कोई और वीसी होता तो क्या विश्वविद्यालय की जड़ों में मट्ठा डालने का काम इस निडरता और बेहयाई से कर पाता जैसे आपने किया? कोई और होता तो क्या एसी और ईसी में ये कहकर बहस पर रोक लगा पाता कि आपको सिर्फ पास करना है, विचार नहीं करना? कोई और होता तो क्या २२ चुने हुए एसी सदस्यों के नोट्स ऑफ़ डिसेंट के बावजूद हज़ारों विद्यार्थियों को सीबीसीएस जैसा अधकच्चा और अधकचड़ा खाना भकोसने पर मजबूर कर पाता? कोई और होता तो क्या भविष्य में अम्बानियों-अडानियों को बेहिसाब मुनाफ़ा दिलानेवाली इस योजना की नींव इतनी मुस्तैदी से रख पाता? सबसे बड़ी बात कि कोई और वीसी होता तो क्या बदले की वैसी कार्रवाइयाँ कर पाता जैसी आपने कीं? मसलन, चासास्का पर मार खाते ही आपने असिस्टेंट प्रोफेसरों के प्रमोशन की कट-ऑफ डेट को यहाँ के फ़ैसले (२०१३) से पांच साल पीछे और यूजीसी के सुझाव (२०१०) से भी दो साल पीछे (२००८) धकेल दिया, शिक्षकों की पेंशन रुकवा दी, रोस्टर में गड़बड़ी को मान्यता देकर और डीयू को अपना ही कानून बनानेवाला स्टेट बताकर ऐसे हालात पैदा कर दिए कि सारे नवनियुक्तों की नौकरी “सब्जेक्ट टू कोर्ट आर्डर” हो गयी. डूटा के जीबीएम की जगहें छीन लेना और सरकारी छुट्टी के दिन भी धरने पर आनेवालों की तनख्वाहें कटवाना तो बदले की ऐसी कार्रवाइयां हैं जो डीयू के इतिहास में पहले ही स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो चुकी हैं.
ऐसे हीरे को पहचानने में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद चूक रहा हैए ये बड़े दुःख की बात हैण् पर चूकना तो जैसे इनकी किस्मत में बदा हैण् शिक्षकों की जमात को पहचानने में भी सत्ताधारी दल वाले ये लोग चूक गएण् ये तो इनने समझ लिया है कि अगर उच्च शिक्षा की बोली लगानी है तो डूटा को पालतू बनाना होगाए पर इसके लिए जो हथकंडे फैलाए हैंए उन्हें देख कर लगता है कि विश्वविद्यालय समुदाय इनकी निगाह में निपट मूर्खों की जमात है.
पहला हथकंडा यह है कि हे शिक्षकोए पे.कमीशन की सिफारिशें आनेवाली है और सरकार हमारी हैए हमीं कुछ दिला सकते हैंण् गोया शिक्षकों को यह पता ही न हो कि आज तक जो भी मिला हैए संघर्ष से मिला हैण् शिक्षक संघ है या प्रॉपर्टी.डीलर की दूकानए कि दोनों पार्टीज को साथ बिठा देंगे मोल.तोल करने के लिएघ् ऐसे डीलरोंध्लीडरों ने पहले क्या.क्या करतूतें की हैंए शिक्षकों को मालूम हैण् असिस्टेंट प्रोफेसरों का एक बड़ा तबका डीलरों की करतूतों का नतीजा भुगत ही रहा है.
मदूसरा हथकंडा यह है कि हे तदर्थोए हमें जिताओए तुम्हें परमानेंट हमीं करायेंगेण् जिस सरकार ने कमर कस रखी है कि जनरल अग्ग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज के तहत शिक्षा को शामिल कराने का जो पुण्य कार्य पिछली सरकार नहीं कर पायीए उसे इस दिसम्बर में नैरोबी की ॅज्व् की बैठक में ष्कुरु कुरु स्वाहाष् कहकर निपटा देना हैए और इस तरह परमानेंट नौकरियाँ तो छोड़ियेए उच्च शिक्षा की सरकारी फंडिंग को ही अतीत की चीज़ बना देना हैए उसके हिमायती लोग विश्वविद्यालय में ऐसे सपने परोसें तो कौन सा होशमंद शिक्षक उनके साथ जाएगाघ् और अफ़सोस कि शिक्षक होशो.हवास वाला ही होता है!
लिहाज़ाए ऐसी कोशिशों से डूटा तो क़ब्ज़े में आने से रहीण् इधर डूटा अगर डीलरों के हाथ न आयी और उधर विश्वविद्यालय के पास भी आप.सा मज़बूत कुलपति न रहाए तो मोदीमय ष्सुधारष् की प्रकट और गुप्त अम्बानीय.अडानीय योजनाओं का क्या होगाघ् हमारा मन तो इसी चिंता में घुला जा रहा हैए महामहिम!
फिर नीम.चढ़े करेले की तरह ये भी सुनने में आ रहा है कि सिरफिरे नेतृत्व वाली डूटा ने जो श्वेत पत्र वगैरा का नाटक पसारा थाए उसे प्रशासन में बैठे कुछ सिरफिरों ने गंभीरता से ले लिया है और उनके हाथ आपकी गर्दन तक पहुंचा ही चाहते हैंण् शासन को तो आपने साध लियाए प्रशासन का क्या करेंघ् हर समय में नंदिता जैसे शिक्षक.नेताओं की ही तरह कुछ न्यायाधीशए कुछ आईएएस अधिकारीए कुछ लेखा.परीक्षक ऐसे ख़ब्ती होते हैं जिन्हें साधना असंभव होता है.
ये सुनकर हमारी हालत बकरे की माँ वाली हो गयी है, श्रीमान. कहते हैं न, बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी! यही वो बात है, जी हाँ, अन्दर की बात जिसके कारण हमारे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे और चिट्ठी की लाइनों में ढलते जा रहे हैं.
बस, आंसुओं के अक्षर काग़ज़ पर उगते नहीं, इसलिए हमें थोड़ा सा रंग मिलाना पड़ा है. उससे ये न समझ लीजिएगा कि ये आंसू नहीं हैं. अब विदाई की वेला में हम झूठ थोड़ी बोलेंगे?
आपका,
एक शुभेच्छु अध्यापक / राष्ट्रबंधु कॉलेज / खिल्ली विश्वविद्यालय
Polling on 27 August (Thursday), 10 am to 5 pm, Arts Faculty
Elect
B. No.
1
Nandita Narain
Dept. of Mathematics, St. Stephen’s College
Ph: 9810261909
nanditanarain@gmail.com
as DUTA President
and
B. No.2Angad TiwariDept. of Hindi, |
B. No.6Bhupinder ChaudhryDept. of History, |
B. No.19Vijaya VenkataramanDept. of Germanic & Romance Studies, |
B. No.20Vivek MohanDept. of History, |