यूजीसी रेग्युलेशंस और गाइडलाइंस 2025 का मसौदा: लैटरल एंट्री, गवर्निंग अथॉरिटीज़ को और ताक़त, शिक्षकों की सेवा और सेवा-शर्तों पर हमले
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- नियुक्ति नियमों में ढील देकर और ‘उल्लेखनीय योगदानों’ के आधार पर अकादमिक क्षेत्र से बाहर के लोगों (लैटरल एंट्री) समेत अपनी पसंद के व्यक्तियों को नियुक्त करना।
- प्रोन्नति के नियमों के ज़रिये हर शिक्षक/अकादमिक कर्मचारी को पुरस्कृत/दंडित करना। प्रोन्नति के लिए जितना शिक्षण और शोधकार्य ज़रूरी है, उसके अलावा एक शिक्षक का 9 सूचीबद्ध क्षेत्रों में से कम-से-कम चार में ‘उल्लेखनीय योगदान’ होना चाहिए।
- ‘उल्लेखनीय योगदानों’ में शामिल हैं: क) शोध, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, कम्यूनिटी प्रोग्राम्स और स्टार्ट-अप्स के लिए यथेष्ट फन्डिंग जुटाना, ख) ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देना और विद्यार्थियों के लिए इंटर्नशिप की व्यवस्था करना, ग) भारतीय भाषाओं और सरकार द्वारा अभिकल्पित ‘इंडियन नालिज सिस्टम’ को बढ़ावा देना, और घ) नवाचारी अध्यापन।
लेवल 10 से लेवल 11 तक की प्रोन्नति को छोड़कर और सभी प्रोन्नतियों के लिए पीएच-डी डिग्री अनिवार्य कर दी गयी है।
मसौदे के क्लॉज़ 3.8 और इसके बाद के क्लॉज़ेज़ में नियुक्ति और प्रोन्नति के योग्य होने के लिए ‘उल्लेखनीय योगदान’ की जो शर्त रखी गयी है, वह शिक्षण और शोध को कमतर महत्त्व देकर ग़ैर-अकादमिक गतिविधियों को ऊपर रखती है। यह सिलेक्शन कमेटियों के हाथ में मनमानी शक्तियाँ देती है और दूसरी तरफ़ अभी की एपीआई पर आधारित व्यवस्था के मुक़ाबले अधिक कठोर, भयानक और अविवेकपूर्ण है (यूजीसी अध्यक्ष के वक्तव्य के लिए नीचे बॉक्स देखें)।
डीटीएफ़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अपनायी गयी आईडीपी को लोगों की जानकारी में लाया था। उसमें स्वीकार किया गया है कि विश्वविद्यालय के कुल खर्चे का मात्र 76.6% यूजीसी से प्राप्त होता है और धीरे-धीरे इस सरकारी वित्त-पोषण से खुद को पूरी तरह अलग कर लेने की इसकी योजना है। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों द्वारा बाज़ार से अपने वित्तीय संसाधन पैदा करने की इसी चरणबद्ध प्रक्रिया के हिस्से के तौर पर इस मसौदे को देखा जाना चाहिए। राजस्व जुटाने को शिक्षक के काम के हिस्से के रूप में प्रस्तावित किया गया है। प्रोन्नति और अन्य सेवा-लाभ दिए जाने से इस आधार पर इनकार करना कॉस्ट कटिंग में शामिल है।
वर्कलोड का सवाल
प्रति सप्ताह प्रत्यक्ष शिक्षण के अधिकतम घंटे, जिसका निर्धारण स्तरीयता बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी है, उसे निर्धारित न किए जाने से शिक्षकों का वर्कलोड बढ़ाए जाने और इस तरह छँटनी की शुरुआत करने की आशंका को बल मिलता है।
इस दिशा में संकेत यूजीसी गाइडलाइंस के मसौदे में मिलता है जिसमें यह कहा गया है कि एनईपी ने जिस ‘सम्पूर्ण’/ ‘होलिस्टिक’ शिक्षा की बात की है, उसके लिए हर शिक्षक का संस्थान में मौजूद रहना ज़रूरी है। हर संस्थान का प्रबंधन यह तय करने के लिए शक्तिसंपन्न है कि शिक्षक की इस मौजूदगी में से कितना समय शिक्षण-अधिगम के लिए, कितना प्रशासकीय कार्यों के लिए और कितना शिक्षक के अपने शोध कार्य के लिए आवंटित करना है। शिक्षण-अधिगम में अब शामिल हैं: “क्लासरूम टीचिंग, प्रैक्टिकल, इनोवैशन लॅब्स, क्लास प्रोजेक्ट्स, असाइनमेंट, टूटोरियल्स; स्पोर्ट्स एण्ड गेम्स, फिज़िकल ऐक्टिविटीज़, सोशल वर्क, एनसीसी, परीक्षाएं, मूल्यांकन; वोकैशनल एजुकेशन, ट्रेनिंग एण्ड स्किलिंग, प्रोजेक्ट वर्क, फ़ील्ड विजिट्स, इन्टर्नशिप, अप्रेन्टिसशिप वगैरह।”
The UGC Chairperson admits that “notable contributions” will be quantified in the following manner!!
“Higher education must be a transformative force”: UGC Chief on Draft Regulations 2025
“The selection committee consists of three subject experts who will use suitable criteria to quantify the “notable contributions,” ensuring that these are inclusive of diverse academic and non-academic pursuits. Out of the nine contributions, applicants must show notable contributions in four areas. They can be evaluated by limiting subjectivity.
- Consultancy/sponsored research funding: … a straightforward metric expressed in monetary terms.
- Digital content creation for MOOCs: … number of courses/modules created, the number of learners enrolled, and completion rates …
- Start-up …: … registration status, funding amount raised, and proof of successful government, angel, or venture capital funding.
- Research or teaching lab development: … number of labs established, the equipment installed, the number of students/researchers using the facilities, or the research output generated.
- Student internship/project supervision: … number of students supervised, completed projects, or internships arranged, along with feedback scores or outcomes.
- Innovative teaching contribution: … student feedback, the number of innovative practices introduced, their adoption rate, and student outcomes…
- Teaching contributions in Indian languages: … number of courses taught in Indian languages, students enrolled, and materials developed.
- Teaching-learning and research in the Indian Knowledge System: Measurable aspects could include publications, courses introduced, or research output in this domain.
- Community Engagement and Service: Quantifiable aspects include the number of community programmes organised, participation rates, and outcomes achieved.”
नियुक्ति
- विषय की विशेषज्ञता का निर्धारण स्नातकोत्तर डिग्री के आधार पर न करके उम्मीदवार की पीएच-डी या नेट के आधार पर करना स्नातकोत्तर डिग्री के अकादमिक महत्त्व को कम करता है।
- अकादमिक डिग्री, शिक्षण अनुभव और शोध-प्रकाशनों पर आधारित स्क्रीनिंग को खत्म करना और सिलेक्शन कमेटी के फ़ैसले को 100% वज़न देते हुए नियुक्ति करना मनमानेपन और ग़ैर-अकादमिक आधारों के लिए ज़्यादा अवसर मुहैया कराएगा।
पिछली सेवाओं की गिनती
- दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक यह माँग करते रहे हैं कि प्रोन्नति के हर चरण में पिछली सेवाओं को गिना जाए, जबकि यह मसौदा यूजीसी के नियमानुसार बनी सिलेक्शन कमेटी के ज़रिये हुए सिलेक्शन तक ही इस गणना को सीमित कर देता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में तदर्थ शिक्षक दिविवि के ईसी रेसोल्यूशन के आधार पर नियुक्त होते रहे हैं। उनकी प्रोन्नति के पहले चरण में भी पिछली सेवाओं की गणना से मिलने वाले लाभ को यह मसौदा खतरे में डाल रहा है।
- जहाँ विदेशी विश्वविद्यालयों में पोस्ट-डॉक अनुभव को उनकी तनख्वाह की वजह से गिनती में लिया जाता है, वहीं भारतीय संस्थानों में वेतन-समानता न होने के कारण उस अनुभव को गिना नहीं जाता। इस विसंगति को दूर किए जाने की जरूरत है।
प्रोन्नतियाँ
- मसौदे में पहली दो प्रोन्नतियों के लिए स्क्रीनिंग कमेटी की जगह सिलेक्शन कमेटी प्रस्तावित है।
- लेवल 12 पर प्रोन्नति के लिए पीएच-डी को ज़रूरी बना देना बहुत कठोर नियम है।
- ‘नौ सूचीबद्ध क्षेत्रों में से चार में उल्लेखनीय योगदान’ की ज़रूरत, जिनका शिक्षण और शोध से कोई सीधा संबंध नहीं है, शिक्षक की ऊर्जा को दिशाहीन बनाकर अकादमिक रूप से अर्थहीन गतिविधियों में लगा देगी।
- विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर सीधी नियुक्ति के लिए ज़रूरी प्रकाशनों की संख्या को 7 से बढ़ाकर 8 कर दिया गया है।
- मसौदा आखिरकार पुस्तकों और पुस्तक-अध्यायों के महत्त्व को मान्यता देता है। लेकिन यह अभी देखना बाक़ी है कि विश्वविद्यालय इसका सम्मान करता है या नहीं। स्कोपस और यूजीसी-केयर लिस्ट वाले जर्नल्स के प्रकाशनों को ही मान्यता देकर प्रोन्नति और नियुक्ति संबंधी 2018 के यूजीसी रेग्युलेशंस का वह पहले ही उल्लंघन कर चुका है।
- सीनियर प्रोफेसर (लेवल 15) पर प्रोन्नति को कुल प्रोफेसरों के 10% तक सीमित कर दिया गया है और उसके लिए पाँच उपाधि-प्राप्त पीएच-डी के अकेले निर्देशन की शर्त रखी गई है।
- सीनियर प्रोफेसर तक प्रोन्नति कॉलेजों में भी होनी चाहिए।
- सीधी नियुक्ति के विपरीत, एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में प्रोन्नति में एक उपाधि-प्राप्त पीएच-डी के निर्देशन की शर्त जोड़ दी गयी है।
अन्य सरोकार
- डीटीएफ़ के नेतृत्व में डूटा ने यूजीसी रेग्युलेशंस 2018 की उन विसंगतियों की एक सूची तैयार की थी जिन्हें दूर करने की ज़रूरत है। वर्तमान नेतृत्व ने 2021 में इस वायदे के साथ चुनाव जीता था कि कुछ ही महीनों के भीतर इन विसंगतियों को दूर किया जाएगा। अब उस पर एकदम चुप्पी है।
- एसोसिएट प्रोफेसर को अध्ययन अवकाश देने के इंकार एक भेदभाव है।
- ‘प्रोफेसर्स ऑफ़ प्रैक्टिस’ स्कीम के ज़रिये ग़ैर-विशेषज्ञों की लैटरल एंट्री शिक्षण-अधिगम और शोध की प्रक्रियाओं को और कमज़ोर करेगी।
- कान्ट्रैक्ट वाली नियुक्तियों पर 10% की हदबंदी हटा दी गई है।
- सेवानिवृत्ति की आयु के मामले में लाइब्रेरीअन और फिज़िकल एजुकेशन के डायरेक्टरों को बराबरी।
- इन्स्ट्रक्टर्स के लिए प्रोन्नति की स्कीम नहीं दी गई है।
- अब कुलपतियों को अकादमिक क्षेत्र से होने की ज़रूरत नहीं है। कुलपतियों की नियुक्ति के लिए सर्च कमेटी का प्रस्तावित काम्पज़िशन संस्थानों की स्वायत्तता छीन लेता है। यही वजह है कि राज्य सरकारें इस मसौदे को स्वीकार करने से मुकर रही हैं।
साथियो, एनईपी-2020 की ही तरह ड्राफ़्ट रेग्युलेशंस 2025 के देश की उच्च शिक्षा के लिए भयावह दुष्परिणाम होंगे। ऐसा लगता है कि सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि एनईपी-2020 के चलते पाठ्यचर्या में अकादमिक गहनता कमतर हुई है लेकिन नीति की दिशा की समीक्षा करने के लिए वह तैयार नहीं है। ये ड्राफ़्ट रेग्युलेशंस शैक्षणिक संस्थानों को सेल्फ-फाइनैन्सिंग/ बाज़ार पर निर्भरता की ओर धकेलने वाली साज़िश को बल देते हैं। अधिकारी अपनी पसंद के लोगों को नौकरी देने, पुरस्कृत और दंडित करने की शक्ति से सम्पन्न होंगे। मौजूदा शासकों के कॉर्पोरेट भाई-भतीजों के हाथ सार्वजनिक उच्च शिक्षा संस्थानों को सौंप देने की इस साज़िश को शिकस्त देने के लिए हमें एक होकर उठ खड़े होना होगा।