Vote DTF
Elect Amar Deo Sharma as DUTA President
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डूटा में फिर जान फूंकिये
पिछले छह महीनों से डूटा गहन चिकित्सा कक्ष (ICU) में है – वही डूटा जिसका इतिहास जुझारू संघर्षों और बेमिसाल उपलबिधयों की दास्तानों से भरा पड़ा है और जिसके ऊपर पिछले कई दशकों से हिंदुस्तान के शिक्षक आंदोलन की अगुवाई का दारोमदार रहा है। आज अगर उसका नेतृत्व शिक्षक हितों की हिफ़ाज़त के अपने बुनियादी संकल्प को ताक पर रखकर हुक्मरानों को खुली छूट देने का हिमायती बन गया है, तो यह हमारी संघ–शकित के मृत्युशैया पर होने का लक्षण नहीं तो और क्या है! निस्संदेह, 25 अगस्त का मतदान वह सही अवसर होगा जब हम अपनी डूटा को बचाने की सबसे संज़ीदा और नतीजाख़ेज़ कोशिश कर सकते हैं।
चली है रस्म कि कोई न सिर उठा के चले
नवउदारवादी एजेंडे को थोपने के मामले में केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली विश्वविधालय के हाकिम-हुक्काम तक का रवैया पिछले सालों में कितना आक्रामक रहा है, हम सब इसके गवाह हैं। उनकी साफ़ समझ है कि क्या पढ़ाया जायेगा, कैसे पढ़ाया जायेगा, किन हालात में पढ़ाया जायेगा और किस मक़सद से पढ़ाया जायेगा – यह तय करना उनका काम है, हम शिक्षकों का नहीं। शिक्षक वह वेतनभोगी कर्मचारी है जिसे अपनी दिहाड़ी के बदले इन तयशुदा बातों पर अमल भर करना है। नीतिगत फ़ैसलों की प्रक्रिया में अपनी भागीदारी का दावा पेश करता शिक्षक एक लंबे अर्से से उनकी आंखों की किरकिरी बना रहा है। जब–जब हम शिक्षकों ने सम्मानजनक सेवा–शर्तों की लड़ाइयां जीतीं, जब–जब हमने शिक्षा को बाज़ार की ताक़तों के हवाले करने का तीखा विरोध किया, जब–जब हमने शिक्षण–अधिगम यानी सिखाने–सीखने की प्रक्रिया का स्तर गिरानेवाली नवउदारवादी पहलक़दमियों का मुंहतोड़ जवाब दिया, तब–तब इन हुक्मरानों को हमारी बौद्धिक और सांगठनिक ताक़त नागवार गुज़री। वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अपने देश के बड़े पूंजीपति घरानों को शिक्षा के क्षेत्र में खरबों का व्यापार पसारने की जगह मुहैया कराना चाहते हैं और इसके लिए विश्वविधालयों को सेवाप्रदाता कंपनियों में, विधार्थियों को उपभोक्ताओं में और शिक्षकों को ठेके पर काम करने वाले विशेषज्ञ टिप्पणीकारों में तब्दील कर देना चाहते हैं। ज़ाहिर है, हर निर्णायक अवसर पर हमारी ताक़त को उन्होंने इस तब्दीली के रास्ते की सबसे बड़ी अड़चन के रूप में देखा। आख़िरकार, सेमेस्टर को थोपने के मौक़े पर उन्होंने तय कर लिया कि अब इस ताक़त को ज़ोर–आज़माइश के अखाड़े से ही बाहर कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह सुनिशिचत किया कि किसी भी मंच पर ‘बहस‘ नाम की बला को जगह न मिलने पाये, वर्ना इन शिक्षकों की बौद्धिक ताक़त बाज़ी मार ले जायेगी। उन्होंने यह सुनिशिचत किया कि व्यावहारिक क्रियान्वयन में डूटा की आवाज़ के लिए कोई झरोखा न खुलने पाये, वर्ना इन शिक्षकों की सांगठनिक ताक़त बाज़ी मार ले जायेगी। ये दोनों चीज़ें उन्होंने कैसे सुनिशिचत कीं, हम सब जानते हैं। उनसे यही उम्मीद भी थी।
पर डूटा नेतृत्व से यह उम्मीद नहीं थी कि अदालती आदेशों की आड़ में वह हुक्मरानों की इस चाल का मोहरा बना जायेगा। सेमेस्टर-विरोधी आंदोलन की शुरुआत डूटा नेतृत्व ने थोड़े बेमन से और थोड़ी देर से ज़रूर की थी, लेकिन जिस तरह की एकजुटता के साथ यह आंदोलन आगे बढ़ा था, उसे देखते हुए क़दम पीछे खींचने का यह तजुर्बा एक सदमे की तरह था। शिक्षकों को धमकाया जाता रहा और ग़लत नियमों के हवाले से उन्हें ‘कारण बताओ‘ नोटिसें जारी होती रहीं, विभागाध्यक्षों और प्राचार्यों को रजिस्ट्रार की ओर से अनाप–शनाप ख़त भेजे जाते रहे, विश्वविधालय प्रशासन रोज़–ब–रोज़ नियमों की धज्जियां उड़ाता रहा, पर हमारी डूटा अदालती आदेश की आड़ में ख़ामोश बैठी रही। प्रशासन अगर नियमों का ग़लत तरीके से हवाला दे रहा था, तो डूटा अदालती आदेश का ग़लत तरीके से हवाला दे रही थी। नये कुलपति के साथ चाय–संध्या क्या मनायी गयी, डूटा ने स्थायी तौर पर उस आदेश की ओट में जाकर लुप्त–गुप्त हो जाने का रास्ता चुन लिया। डूटा के नेतृत्वकारी ग्रुप ए.ए.डी. पर चाय का यह संक्रामक प्रभाव बहुतों के लिए एक झटके की तरह था। शिक्षक और शिक्षा का सुरक्षा–कवच बनने की बजाय इस ग्रुप ने ओ.एस.डी. समेत विभिन्न तरह के पदों के लिए नियुक्ति–पत्र बांटने की खिड़की बनना पसंद किया। इस तरह उसने अपनी प्राथमिकताओं को बेनक़ाब कर दिया। तभी तो उसे इस अंतर्विरोध की भी परवाह नहीं रही कि जिस सेमेस्टर के विरोध में डूटा अदालत में मुकदमा लड़ रही है, उसी से जुड़े पाठयक्रमों पर ए.सी. तथा इ.सी. में ए.ए.डी. के लोगों ने अपनी कोई असहमति दर्ज नहीं करवायी और इस तरह उन निर्णयों के भागीदार बनने की ऐतिहासिक निर्लज्जता का प्रदर्शन किया (ए.सी. में प्रस्तावित पाठयक्रमों पर डी.टी.एफ़. से जुड़े चार सदस्यों समेत कुल छह ने असहमति दर्ज करवायी)।
हमको रहना है पे यूं ही तो नहीं रहना है
डूटा कई दशकों से इस देश का सबसे शकितशाली और ज़िम्मेदार शिक्षक संघ रहा है। उसने बड़ी–बड़ी लड़ाइयां जीती हैं जिनका फ़ायदा पूरे देश के शिक्षक–समुदाय को मिला है। आज डूटा के गौरवशाली दिनों को याद करना ज़रूरी है; सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वर्तमान डूटा नेतृत्व की कमज़ोरी से उपजनेवाली मायूसी को झटक देने के लिए हम मन को यह समझा सकें कि जाते–जाते यूं ही पल भर को ख़िज़ां ठहरी है, बल्कि इसलिए भी कि शिक्षा के व्यावसायीकरण और निजीकरण के लिए कटिबद्ध सरकार के पिटारे में अभी अनगिनत चीज़ें बाहर आने की अपनी बारी का इंतज़ार कर रही हैं। उच्च शिक्षा पर छह बिल संसद में पेश होने जा रहे हैं जिनका पूरा फ़ोकस शिक्षा को बिकाऊ माल में तब्दील करने पर है। इनसे आर–पार की लड़ाई हमें लड़नी ही होगी। पर हालत ये है कि नेतृत्व की कमज़ोरी के चलते हम अभी पीछे से चली आती कारस्तानियों को भी चुनौती नहीं दे पाये हैं। प्रोन्नति के लिए बने हुए बेढब प्वाइंट सिस्टम के ख़िलाफ़ लड़ाई अभी तक शुरू ही नहीं की गयी है। हम जानते हैं कि पी.बी.ए.एस. का यह नक़्शा जहां ज़्यादातर शिक्षकों को असोसिएट प्रोफ़ेसर बनने से रोकने का बहाना है, वहीं उन्हें आज्ञाकारी और पालतू बनाने का ज़रिया भी है, क्योंकि हमारे स्कोर का एक बड़ा हिस्सा प्राचार्यों और ऐसे ही विशेषज्ञों की कृपा पर निर्भर होगा। क्या इस साज़िश के ख़िलाफ़ एक निर्णायक संघर्ष छेड़ने की ज़रूरत नहीं है? सेमेस्टराइज़ेशन के बहाने स्थायी नियुकितयों को टालते जाने का प्रशासन का रवैया हमारे समुदाय के एक बड़े हिस्से के लिए दु:स्वप्न की तरह हो गया है। चार–चार महीने के अनुबंध पर काम करनेवाले ये साथी सालाना वेतनवृद्धि से लेकर चिकित्सा–सुविधाओं तक – हर चीज़ से वंचित हैं; मैटर्निटी लीव की तो बात ही क्या। क्या स्थायी नियुकितयों के लगातार टलते जाने की सूरत में तदर्थ शिक्षकों–शिक्षिकाओं को ये सारी सुविधाएं दिलाने की लड़ार्इ नहीं लड़ाई नहीं लड़ी जानी चाहिए?
ऐसे दसियों मुद्दॆ और सवाल हैं जिनसे आज दिल्ली विश्वविधालय का आम शिक्षक रू-ब–रू है।
आइये, एक जुझारू डूटा बनायें और मुक़ाबला जारी रखें।
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अध्यक्ष पद के लिए.
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अमर देव शर्मा
हिंदी विभाग, दिल्ली कालेज आफ़ आर्टस ऐंड कामर्स, फ़ोन: 9868173032, 9560826961
कार्यकारिणी के लिए
आभा देव हबीब
भौतिकी विभाग, मिरांडा हाउस, फ़ोन: 9818383074
गिरिराज बैरवा
राजनीतिशास्त्र विभाग, राजधानी कालेज, फ़ोन: 9818466999
अनिल कुमार
हिंदी विभाग, मोतीलाल नेहरू कालेज, फ़ोन: 9868264503
सैकत घोष
अंग्रेज़ी विभाग, एस.जी.टी.बी.खालसा कालेज, फ़ोन: 9910091754