चलो कि लम्बा है सफर
कुरते के फड़फड़ाते छोर
जैसे ताल मिलाते हों
सीने में धड़कते
दिल के साथ साथ
कि ये जो आदमी है
इसके जोश के लिये
कई और चाहिये दिल
फड़कती बाज़ुओं
और दौड़ते कदमों को
खून की आपूर्ति के लिये
कि ये कभी रुकता ही नहीं
खटखटाता ही रहता है
दरवाजे दीवारें दिमाग
हमारे सम्मान के लिये
और वो गुस्सा
जो उठता ही रहता है
तोड़ता ही रहता है
हड्डियाँ सुपारी की
पीसता ही रहता है
नसें कथ्थे की
चलो कि इस सीने में
और जोश भर दें
चलो कि इन बाज़ुओं को
और बाज़ुओं की ताकत दे दें
चलो कि बड़ा लम्बा है
अमर का सफर
– संजीव कौशल